कथाव्यास संत के बयान पर हरिद्वार के संतों में रोष
लव कुमार शर्मा, हरिद्वार। अवधूत मंडल आश्रम बाबा हीरादास हनुमान मंदिर में श्री अखण्ड परशुराम अखाड़े के तत्वावधान में आयोजित बैठक में संत महामंडलेश्वरों ने एक कथाव्यास संत पर हिंदुओं के प्रति अनर्गल टिप्पणी करने का आरोप लगाते हुए माफी मांगने की मांग उठाई। संतो ने चेतावनी दी कि यदि संत द्वारा माफी नहीं मांगी तो उन्हें हरिद्वार में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। बैठक को संबोधित करते हुए महामंडलेश्वर डा. स्वामी संतोषानंद महाराज ने कहा कि सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी प्राप्त हुई है कि एक संत हिंदुुओं के प्रति अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं।
भगवान कृष्ण के प्रति भी उनकी संकीर्ण मानसिकता जगजाहिर हुई है। हिंदुओं की छवि को धूमिल करने का काम किया जा रहा है। जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अखाड़ों को किसी को संत बनाने या कोई पदवी देने से पूर्व उसकी पूरी जांच पडताल करनी चाहिए और पृष्ठभूमि का पता लगाना चाहिए। महामंडलेश्वर प्रबोधानंद महाराज ने कहा कि उक्त संत का हरिद्वार आने पर जमकर विरोध किया जाएगा। हिंदुओं पर अनर्गल टिप्पणी किसी भी सूरत में सहन नहीं की जाएगी। उनके द्वारा हिंदुओं का अपमान किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी टिप्पणी से समस्त हिंदू समाज की भावनाएं आहत हुई हैं। सनातन संस्कृति को पूरी दुनिया अपना रही है।
उन्होंने कहा कि डाॅलर और चांदी कमाने के लिए हिंदू समाज को अपमानित करने का काम किया जा रहा है। जिस संत से इस प्रकार की बयानबाजी की है वह गृहस्थी हैं। उन्हें संत कहना भी कहना गलत है। श्री अखण्ड परशुराम अखाड़े के अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक ने कहा कि सनातन हिंदू धर्म के देवी देवताओं के प्रति अनर्गल टिप्पणी करने का उक्त संत को कोई अधिकार नहीं है। हिंदू समाज की भावनाओं को आहत करने के लिए उन्हें तत्काल माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अखाड़ा परिषदको संत के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और हिंदू समाज को उनका बहिष्कार करना चाहिए। सामाजिक सेना के प्रमुख स्वामी विनोद महाराज व महंत श्यामप्रकाश ने कहा कि संत और हिंदू समाज हमेशा ही पूरे विश्व का मार्गदर्शन करता रहा है।
कथावाचक जो स्वयं को संत कहते हैं ने भगवान कृष्ण और हिंदू समाज के प्रति अनर्गल टिप्पणी कर शर्मनाम कार्य किया है। ऐसे कथित संत का संत समाज से बहिष्कार किया जाना चाहिए। इस अवसर पर आचार्य ललितानंद, महंत श्यामप्रकाश, स्वामी देवानंद, सुशील चैतन्य महाराज आदि ने भी अपने विचार रखे।