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-सुदेश आर्या
“पर्सनैलिटी डिसॉर्डर”
#कुछ_खास_लक्षण : –
#खालीपन व्यक्ति के अंदर सूनापन होता है, व्यक्ति भीतर से खालीपन महसूस करता है। वह खुद को अकेला समझता है। उसको क्रॉनिक फीलिंग्स ऑफ एम्प्टीनेस कहते हैं।
#अस्थिर_संबंध आप या तो बहुत जल्दी किसी के पास चले जाएंगे और अगर पास चले गए तो बहुत जल्दी दूर खिंच जाएंगे। रिश्तों में अस्थिरता होती है। रिश्ते बहुत तेजी से बनते-बिगड़ते हैं। लंबे समय तक कोई भी रिश्ता बनाए रखना इनके लिए कठिन होता है। एक पल में किसी पर विश्वास कर लेते है कुछ ही मिनटों में विश्वास खत्म हो जाता है।
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“डिसोसिएशन” (अलगाव) आप किसी इंसान को या तो भगवान बना देंगे या अगर उस इंसान ने आपके खिलाफ कुछ कर दिया तो उससे नफरत करने लगेंगे। ऐसे लोग या तो किसी से बहुत प्रेम करने लगते हैं या अकारण ही नफरत।
“पैरासुसाइड” ये सुसाइड करने से अलग होता है, इसमें जो विचार आते हैं, उसे पैरासुसाइड कहते हैं। इसमें सुसाइड का डर देकर अपना काम करवाना शामिल है।
“इम्पल्सिविटी” (आवेगशीलता)- एकदम से कोई ख्याल उठना, छोटी सी बात पर बहुत गुस्सा करना। ऐसे मरीज कभी कोई एक निर्णय नहीं ले पाते हैं। किसी एक चीज का चुनाव करना इनके लिए कठिन होता है। अगर कुछ सोच लिया तो उसे तुरंत करना है, फिर समय और हालात भी नहीं देख पाते।
“छोड़ दिए जाने का डर”- ऐसा लगता है कि आपको सब लोग छोड़ देगें। उन्हें अपने से दूर किए जाने के डर से आप उन्हें बार-बार फोन करने, तंग करने लगते हैं।
“पैरानोया” दिमाग में डर, शक होना।
“सेल्फ इमेज की कमी” जैसे : खुद के बारे में एक जैसी और अच्छी सोच ना रख पाना। खुद को दूसरों से जुड़ा हुआ महसूस न करना। चिंता और अवसाद की भावना से घिरे रहना। खुद को संभाल नहीं पाने के कारण सेक्स व मादक द्रव्यों का सेवन ज्यादा करना। लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना।
इस बीमारी में इंसान अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने रखने की बजाए इंसान उन्हें छिपाने और दबाने लगता है और यहीं से बीमारी की शुरुआत होती है। जिंदगी में सकारात्मक सोच और अपने हासिल पर खुश होकर हालात बदले जा सकते हैं और बीमारी को कहीं दूर फेंका जा सकता है जरूरत सिर्फ़ एक ईमानदार कोशिश की है।
सामान्य दिखने वाले ये लोग दरअसल मरीज हैं जिन्हें #बॉर्डरलाइन_पर्सनैलिटी_डिसॉर्डर ने अपने घेरे में जकड़ रखा है। भले ही लोग इसे अपनी तन्हाई, किस्मत, बेबसी समझें पर है ये बीमारी ही।
ज्यादातर समय ये लक्षण बने रहते हैं तो यह मामूली बात नहीं है। वैसे ये लक्षण कभी-कभार हम सबमें दिखाई दे जाते हैं, पर बीपीडी से पीड़ित लोगों में यह व्यवहार बहुत बढ़ जाता है। ज्यादातर समय मरीज बेहद संवेदनशील रहने लगता है। कुल मिलाकर, यह व्यक्ति के मूड, छवि और व्यवहार में तेजी से बदलाव आने की दिक्कतों से जुड़ी मानसिक समस्या है। उपचार में देरी किए जाने से बीपीडी के मरीजों में अवसाद और मूड संबंधी दूसरी समस्याएं भी होने लगती हैं।
यह एक ऐसा मानसिक विकार है जिससे विश्व के 2% लोग प्रभावित हैं। और यह सबसे भ्रमित करने वाली मानसिक बीमारी है। एक ऐसी विचित्र बीमारी है जो ना बीमारी है, ना नॉर्मल है। और उसमें जो सबसे विचित्र नमूना है, वो है बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर। इसके 80% से 90% केस औरतों के साथ होते हैं। बाकी पुरुषों के साथ होते हैं। भारत में लगभग 2 करोड़ लोग बीपीडी के शिकार हैं। इनमें 95% लोगों को कोई मेडिकल मदद नहीं मिल पाती है।
कई लक्षण सामान्य होने के कारण इस डिसॉर्डर की पहचान मुश्किल होती है। कई बार बीमार व्यक्ति की दिक्कत परिवार भी नहीं समझ पाता। एक ओर इस डिसॉर्डर से पीड़ित व्यक्ति अकेला महसूस करता है, दूसरी ओर पल-पल में मूड बदलना लोगों को मरीज के करीब आने ही नहीं देता। इसी वजह से पीड़ित व्यक्ति अंदर ही अंदर घुटता रहता है और अपनी बात किसी से साझा नहीं कर पाता है। जिससे स्थितियां बिगड़ती चली जाती है।
■ इसमें दो ही किस्म के रोगी होते है मोस्टली :-
पहली है न्यूरोसिस कंडीसन :- ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान होता है, लेकिन इसके बावजूद वह अपनी धारणा और वास्तविकता के बीच का अंतर बता सकता है। इन लोगों को अगर सही कॉउंसिल करदे कोई तो ये 7 दिन में 99% सही हो सकतें है।
दूसरी है #साइकोसिस – ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान होता है, लेकिन इसके बावजूद वह अपनी धारणा और वास्तविकता के बीच का अंतर बताने में असमर्थ होता है। ये वाले रोगी सेल्फ हार्म, सुसाइड या किसी और व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकते है। या रोग को बाइपोलर डिसऑर्डर तक भी ले जा सकतें हैं। भ्रम या मतिभ्रम का अनुभव इनमें सबसे ज्यादा होता है।