उत्तराखण्ड

नये कानूनों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या बदलाव आए ? इनके क्या सजा के प्रावधान है ? जानते हैं उत्तराखंड उच्चन्यायालय के अधिवक्ता ललित मिगलानी से

नये कानूनों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या बदलाव आए ? इनके क्या सजा के प्रावधान है ? जानते हैं उत्तराखंड उच्चन्यायालय के अधिवक्ता ललित मिगलानी से

 

आज कल रोज एक नया केस महिला उत्पीड़न का सुना जा रहा है अक्सर कोई न कोई लड़की महिला यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही है। देश में 1 जुलाई से नए कानून भी आ गये है। उन नये कानूनों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या बदलाव आए है इनके क्या सजा के प्रावधान है इन सभी बातों को ले कर आज हम उत्तराखंड उच्चन्यायालय के अधिवक्ता ललित मिगलानी से चर्चा करते हुए अधिवक्ता मिगलानी ने बताया कि नये कानूनों में महिलाओं के लिये क्या क्या प्रावधान है।

भारतीय न्याय संहिता में नए अपराधों को शामिल किया गया है जैसे- शादी का वादा कर धोखा देने के मामले में 10 साल तक की जेल, नस्ल, जाति- समुदाय, लिंग के आधार पर मॉब लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास की सज़ा, महिलाओं और बच्चों से संबंधित अपराध के फैसले अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 से 97 के तहत किए जाएंगे।

उच्चन्यायलय के अधिवक्ता ललित मिगलानी ने बताया कि इस नए कानून के लागू हो जाने के बाद महिलाओं के लिए क्या-क्या बदल गया है और क्या नहीं?

रेेप की धारा अब 63, नाबालिग से गैंगरेप…मृत्युदंड
रेप की धारा 375 नहीं, अब 63 है, भारतीय न्याय संहिता में धारा 63 में रेप की परिभाषा दी गई है और 64 से 70 में सजा का प्रावधान किया गया है।

पहले आईपीसी में धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया था, जबकि 376 में सजा का प्रावधान था। आईपीसी की धारा 376 के तहत रेप का दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है, बीएनएस की धारा 64 में भी यही सजा रखी गई है।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 70 (1) के तहत किसी महिला के साथ गैंगरेप के अपराध में शामिल हरएक व्यक्ति को कम से कम 20 साल की सजा होगी, जो उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है। जुर्माना भी लगाया जाएगा और ये रकम पीड़ित महिला को मिलेगी।

नाबालिगों से दुष्कर्म में सख्त सजा कर दी गई है, बीएनएस के सेक्शन 70 (2) के मुताबिक अगर पीड़ित 18 साल से कम यानी नाबालिग है तो गैंगरेप में शामिल प्रत्येक व्यक्ति को फांसी तक की सजा हो सकती है।

पिछले कानून में यानी आईपीसी की धारा 376 डी और बी के तहत 12 साल से कम उम्र तक की नाबालिग से गैंगरेप करने पर फांसी और 12 साल से ऊपर की युवती से गैंगरेप के आरोपी को अधिकतम सजा आजीवन कारावस की हो सकती थी।

मैरिटल रेप अपराध नहीं, लेकिन…
मैरिटल रेप का मुद्दा कई सालों से भारतीय न्यायिक परिचर्चा में एक विवादास्पद विषय रहा है, निर्भया रेप मामले के बाद जस्टिस वर्मा की कमेटी ने भी मैरिटल रेप के लिए अलग से कानून बनाने की मांग की थी, उनकी दलील थी कि शादी के बाद सेक्स में भी सहमति और असहमति को परिभाषित करना चाहिए।

भारतीय न्याय संहिता में मैरिटल रेप का जिक्र नहीं है। धारा 63 के अपवाद ( 2) में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाता है तो इसे रेप नहीं माना जाएगा बशर्ते पत्नी की उम्र 18 साल से ज्यादा हो। साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने महिला की आयु 18 साल कर दी थी यानी नाबालिग पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना अपराध होगा।

आईपीसी के पुराने नियम में धारा 375 में प्रावधान था कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ज्यादा है तो जबरन संबंध बनाना रेप नहीं माना जाएगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ में 18 साल से कम उम्र में भी शादी की इजाजत है इसलिए नए प्रावधान का प्रमुख असर मुस्लिमों पर होगा।

झूठा वादा करके यौन संबंध बनान अपराध…
आपराधिक कानून मे शादी का झूठा वादा करके सेक्स को खासकर से अपराध की श्रेणी में डाला गया है इसके लिए 10 साल तक की सजा होगी।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति शादी, रोजगार या छल करके महिला से यौन संबंध बनाता है तो ये अपराध होगा। इसके लिए दस साल तक की सजा बढ़ाई जा सकती है साथ ही जेल और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

इस धारा के तहत अगर कोई व्यक्ति पहचान छिपाकर शादी करता है तो उस पर भी दस साल तक की सजा का नियम लागू होगा। हालांकि इस धारा के अंतगर्त आने वाले मामलों को रेप की कैटगरी से बाहर रखा गया है.

पहले आईपीसी में शादी से झूठा वादा कर यौन संबंध बनाना, रोजगार या प्रमोशन का झूठा वादा करना और पहचान छिपाकर शादी करने जैसी चीजों के लिए कोई साफ- साफ प्रावधान नहीं था। अदालतें आईपीसी की धारा 90 के तहत इस तरह के मामलों को सुनती थी जहां झूठ के आधार पर ली गई सहमति को गलत माना जाता था इ्स तरह के मामलों में आईपीसी की धारा 375 के तहत आरोप लगाए जाते थे, 10 साल तक जेल का प्रावधान था.

नए प्रावधानों का असर लिव इन रिलेशन्स पर सबसे ज्यादा पड़ेगा

यौन उत्पीड़न मामलों में क्या होगा?
नए कानून में यौन उत्पीड़न जैसे अपराध को धारा 74 से 76 के तहत परिभाषित किया गया है और ये कोई खास बदलाव नहीं किया गया है।

आईपीसी में यौन उत्पीड़न के अपराधों को धारा 354 में परिभाषित किया गया था साल 2013 में ‘आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013’ के बाद इस धारा में चार सब सेक्शन जोड़े गए थे, जिसमें अलग अलग अपराध के लिए अलग अलग सजा के प्रावधान थे।

आईपीसी की धारा 354ए के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ सेक्सुअल नेचर का शारीरिक टच करता है और मर्जी के खिलाफ पोर्न दिखाता है तो उसके लिए तीन साल तक की सजा, जुर्माना या दोनों का प्रावधान था।

354 बी के तहत अगर कोई आदमी किसी महिला के जबरन कपड़े उतारता है या फिर ऐसा करने की कोशिश करता है तो ऐसे मामलों में तीन से सात साल तक की सजा के साथ जुर्माने का प्रावधान किया गया था।

354 सी के तहत महिला के प्राइवेट एक्ट को देखना, उसकी तस्वीरें लेना और प्रसारित करना अपराध था, जिसके लिए एक से तीन साल की सज़ा का प्रावधान था। अपराध दोहराने पर जुर्माने के साथ सजा बढ़कर तीन से सात साल तक हो जाती थी।

पीछा करने पर कितनी सज़ा
नए कानून में क्या- धारा 77 के मुताबिक महिला का पीछा करने, मना करने के बावजूद बात करने की कोशिश, ईमेल या किसी दूसरे इंटरनेट संचार पर नजर रखने जैसे अपराधों को इसमें परिभाषित किया गया है, जिसमें आईपीसी की तरह ही सज़ा का प्रावधान है यानी कोई बदलाव नहीं किया गया है।

पहले क्या था- इस तरह की हरकतों को अपराध माना गया था आईपीसी की धारा 354डी के तहत पहली बार इस तरह के अपराध करने पर जुर्माने के साथ सजा को तीन साल तक बढ़ाया जा सकता था वहीं अगर दूसरी बार अपराध करने पर जुर्माने के साथ सजा को पांच साल के लिए बढ़ाए जाने का प्रावधान था।

शादीशुद महिला को फुसलाना भी अपराध माना गया है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 84 के तहत अगर कोई शख्स किसी शादीशुदा महिला को फुसलाकर, धमाकर या उकासाकर अवैध संबंध के इरादे से ले जाता है को ये दंडनीय अपराध है, इसमें 2 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

दहेज हत्या को लेकर कोई बदलाव नहीं
कानून के मुतबिक अगर शादी के सात सालों के अंदर किसी महिला की मौत जलने, शारीरिक चोट लगने या संदिग्ध परिस्थितियों में होती है और बाद में ये मालूम चले कि महिला की मौत का जिम्मेदार उसका पति, पति के रिश्तेदारों की तरफ से उत्पीड़न तो उसे ‘दहेज हत्या’ माना जाएगा।

भारतीय न्याय संहिता में धारा 79 में दहेज हत्या को परिभाषित किया गया है और सजा में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है. यानी जिस तरह की सजा की व्यवस्था आईपीसी में थी ठीक वही सजा का प्रावधान नई भारतीय न्याय संहिता में भी है।

पहले क्या था- आईपीसी की धारा 304बी के तहत कम से कम सात साल कैद की सज़ा की बात है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।

अडल्ट्री अब अपराध नहीं
भारतीय न्याय संहिता में अडल्ट्री को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। अडल्ट्री को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 497 को जिसमें अडल्ट्री के नियमों को बताया गया है उसे सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मनमाना होने और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करने के कारण रद्द कर दिया था।

इटली में रहने वाले प्रवासी भारतीय जोसेफ शाइन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी जिस पर फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि ऐसा कोई भी कानून जो व्यक्ति कि गरिमा और महिलाओं के साथ समान व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, वह संविधान के खिलाफ है।

अडल्ट्री पर कानून 1860 में बना था आईपीसी की धारा 497 में इसे परिभाषित करते हुए कहा गया था कि अगर कोई मर्द किसी दूसरी शादीशुदा औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला के पति की शिकायत पर इस मामले में पुरुष को अडल्ट्री कानून के तहत आरोप लगाकर मुकदमा चलाया जा सकता था ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल की कैद और जुर्माना या फिर दोनों ही सजा का प्रवाधान भी था।

इन बदलावों का हुआ स्वागत
जांच-पड़ताल में अब फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने को अनिवार्य बनाया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा इस्तेमाल, जैसे खोज और बरामदगी की रिकॉर्डिंग, सभी पूछताछ और सुनवाई ऑनलाइन मॉड में करना इन बदलावों का कई विशेषज्ञों ने स्वागत भी किया गया है। हालाँकि, यह कितना प्रभावी होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे कैसे लागू किया जाता है। एफआईआर, जांच और सुनवाई के लिए अनिवार्य समय-सीमा तय की गई है। उदाहरण के लिए, अब सुनवाई के 45 दिनों के भीतर फैसला देना होगा, शिकायत के 3 दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करनी होगी।
तो ये थी एक चर्चा हाई कोर्ट नैनीताल के अधिवक्ता ललित मिगलानी के साथ। आगे भी किसी मुद्दे को लेकर हम इनसे ऐसे ही जानकारी लेते रहेंगे।