हरिद्वार / उत्तरी हरिद्वार की प्रख्यात धार्मिक संस्था हरि सेवा आश्रम का 35वां वार्षिकोत्सव समारोह धर्म सत्ता और राज सत्ता के बीच धूमधाम से मनाया गया। वार्षिकोत्सव समारोह का पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी, पतंजलि योगपीठ के महासचिव आचार्य बालकृष्ण महामंडलेश्वर हरिचेतनानंद, भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ, महामंडलेश्वर कुमार स्वामी, बड़ा अखाड़ा उदासीन के महंत रघुमुनी महाराज ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारंभ किया।
इस अवसर पर जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि सनातन संस्कृति राग द्वेष से ऊपर उठकर परमार्थ और लोक कल्याण की संस्कृति है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति प्रेम, समर्पण, शिष्टता का बोध कराने वाली संस्कृति है, हमें एक दूसरे के प्रति ये बोध नहीं करना चाहिए कि मैं अधिक श्रेष्ठ हूं। हमारे अंदर शिष्टता, समर्पण का भाव हमेशा रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि करोना काल में विश्व ने भारत के योग और आयुर्वेद को अपनाया। आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि ने कहा कि हरि सेवा आश्रम में सनातन संस्कृति और धर्म की अनूठी छटा देखने को मिल रही हैं। स्वामी हरिचेतनानंद महाराज समर्पण और जोड़ने की बात करते हैं। हमें अपने बच्चों को संस्कारित करना चाहिए और गो, गंगा, गुरु की सेवा का आचरण कराना चाहिए। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष एवं महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि धर्म सत्ता और राज सत्ता को एक मंच पर लाने के लिए और ज्ञान की परिभाषा को समाज में स्थापित करने के लिए महाराज हरिचेतनान्द का साधुवाद है। जिस देश में राजसत्ता धर्म सत्ता के नेतृत्व में चलती है उस देश की उन्नति को कोई रोक नहीं सकता। राजसत्ता को चलाने के लिए धर्म का पालन करना जरूरी होता है। हमें धर्म का पालन करते हुए सेवा समर्पण भाव से कार्य करने चाहिए। महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि संतों के समागम से जीवन को नई ऊर्जा मिलती है। कोई भी व्यक्ति अयोग्य नहीं होता है सभी के अंदर कोई ना कोई अच्छाई होती है, योग्यता होती है, उन्हीं में हरिचेतनानंद महाराज है जिन्होंने राजसत्ता और धर्म सत्ता को एक जगह बैठाने का काम किया। उन्होंने कहा कि जब तक भारत में संत है तब तक भारत का अंत नहीं है, भारत अनंत है। उन्होंने कहा कि जिस देश में सूरज नहीं डूबता था उस राष्ट्र में भी उस देश में भी भारत का प्रधानमंत्री है। उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की सनातन संस्कृति को बढ़ाने के लिए संकल्पित है। उन्होंने भारत की विदेशों में गरिमा को बढ़ाने का काम किया है। उन्होंने संतों के आदेश पर भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण सुचारू रूप से किया है। विधान सभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूरी ने कहा कि समाज को बिखरने से बचाने के लिए संतों का की अहम भूमिका होती है। संतों की शरण में आने से नई ऊर्जा और नई दिशा मिलती है। समाज और देश संतों का जीवन समाज और देश को और राष्ट्र धर्म को समर्पित होता है। हमें अपने बच्चों को संस्कारवान बनाना चाहिए। हमें नई संस्कृति को तो अपनाना चाहिए लेकिन अपने पुराने संस्कार और रीति रिवाज को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि संतों के शरण में आने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और नई ऊर्जा प्राप्त कर समाज में कार्य करने में बल मिलता है। पूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान सांसद डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि सनातन संस्कृति हमें आपस में प्रेम सद्भाव सदाचार का पाठ पढ़ाती है। हमें संतों के आशीर्वाद लेकर नई दिशा में नई सोच के साथ कार्य करना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा कि संतांे के दर्शन से जीवन को नई दिशा मिलती है, हमें संतों का आशीर्वाद लेते रहना चाहिए। संतो के आशीर्वाद से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और संतों को बिना किसी औपचारिकता के अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करते रहना चाहिए तभी गुरु शिष्य परंपरा मजबूत होगी। पतंजलि योगपीठ के पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि वैदिक सनातन संस्कृति भारत की पहचान है। हमें योग और अध्यात्म के बल पर आगे बढ़ना है और देश का नाम विश्व में ऊंचा करने के लिए विकास के पथ पर अग्रसर रहना है। उन्होंने कहा कि विश्व में वैदिक सनातन संस्कृति की अनूठी पहचान है। हरि सेवा आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने सभी अतिथियों व आचार्य महामंडलेश्वर और संतों का शॉल ओढ़ाकर माल्यार्पण कर स्वागत किया और एकता के सूत्र में बांधने के लिए उन्होंने राजसत्ता और धर्म सत्ता को एकत्रित कर अनूठी पहल की। इस अवसर पर म.मं. डा. प्रेमानंद महाराज, म.मं. भगवत स्वरूप, संपूर्णानंद, शिवानंद, अभयानंद, मध्य प्रदेश के मंत्री म.मं. अखिलेश्वरानंद, महंत दुर्गादास, कोठारी महंत दामोदर दास, महंत ज्ञानदेव सिंह, म.मं. चिदविलासानंद, बाबा हठयोगी, म.मं. प्रबोधानंद गिरि, म.मं. परमात्मदेव, म.मं. अर्जुन पुरी, म.मं. ललितानंद गिरि, म.मं. उमाकांतानंद सरस्वती, म.मं. कृष्णानंद, महंत विष्णुदास, महंत दुर्गादास, महंत प्रहलाददास, महंत कमल दास, महंत केशवानंद, महंत योगेंद्रानंद शास्त्री, साध्वी शक्ति पुरी, कुलपति दिनेश चंद्र शास्त्री सहित सैकड़ों श्रद्धालु भक्तों ने प्रतिभाग किया।