राज्य सम्मान के लिए सात चयनित—लेकिन 4201 दिव्यांगजन में से कितनों तक पहुँची व्यवस्था? सिस्टम की सुस्ती पर सवाल, प्रतिभा ने दिया करारा जवाब।
विश्व दिव्यांग दिवस… एक ऐसा दिन जब पूरे देश में भाषणों और औपचारिक कार्यक्रमों की गूंज सुनाई देती है। लेकिन चम्पावत का विकास भवन इस बार इन औपचारिकताओं से आगे बढ़कर एक गहरी सच्चाई को सामने लाया—दिव्यांगजन सिर्फ सहानुभूति नहीं, अवसर और अधिकार चाहते हैं। समाज कल्याण विभाग द्वारा आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि दर्जा राज्यमंत्री श्याम नारायण पांडे और एडीएम कृष्णनाथ गोस्वामी ने सम्मानित प्रतिभागियों का मनोबल बढ़ाया। यह दृश्य भावुक था—पर उतना ही कड़वा सच यह भी है कि सम्मान केवल एक दिन का होता है, जबकि संघर्ष 365 दिन का।
दिव्यांगजन की उड़ान—व्यवस्था की चुनौतियों को चीरकर सफलता की राह बनाते चेहरे जो सम्मानित हुए—अबरार हुसैन, लक्ष्मी दत्त, रश्मि जोशी, राजेंद्र सिंह, गुणानंद पंत, और हल्द्वानी में सम्मानित पुनीत व आदित्य प्रताप सिंह—ये सिर्फ विजेता नहीं, बल्कि सिस्टम को आईना दिखाने वाली चलती-फिरती मिसालें हैं। इनकी सफलता कहती है “हमारे भीतर कमी नहीं, अवसरों और संसाधनों की कमी है।” हर प्रशस्ति पत्र, हर मेडल इस सच्चाई पर मुहर लगाता है कि इच्छाशक्ति अपार है, लेकिन व्यवस्थाएं अब भी आधी-अधूरी। 4201 पंजीकृत दिव्यांगजन—सवाल ये नहीं कि कितने पेंशन ले रहे, असली सवाल ये है कि कितनों को गरिमा मिली? प्र. जिला समाज कल्याण अधिकारी निरंकार मिश्रा बताते हैं कि जिले में 4201 दिव्यांगजन हैं, जिनमें से 3285 पेंशन लाभार्थी हैं।
लेकिन पेंशन तो न्यूनतम सहयोग है—क्या यह किसी का जीवन बदल सकता है? और ₹8,000 वार्षिक सम्मान—क्या यह किसी दिव्यांग की सृजनशीलता या उसके संघर्ष का मूल्यांकन है? यह सम्मान प्रेरक है, परंतु यह भी सच है कि इतनी राशि में न सपने पूरे होते हैं और न आर्थिक मजबूती आती है। समाज को बदलना होगा क्योंकि सहानुभूति नहीं, समान अधिकार चाहिए। चम्पावत में आयोजित यह कार्यक्रम हमें याद दिलाता है कि दिव्यांगजन दया के पात्र नहीं, अवसर के हकदार हैं। सम्मान तभी सार्थक होगा जब रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक स्थलों पर वास्तविक सुलभता सुनिश्चित होगी। समाज तब प्रगतिशील कहलाएगा जब दिव्यांगजन की सफलता अपवाद नहीं, सामान्य बात होगी। कार्यक्रम में मौजूद राजेंद्र गहतोड़ी, दीपक चंद्र गहतोड़ी, जितेन्द्र चंद, तारा महरा, जगदीश चंद्र, बृजेश जोशी, हिम्मत सिंह सहित अनेक लोग इस परिवर्तन के साक्षी बने—पर अब वक्त दर्शक बनने का नहीं, बदलाव बनने का है।
